Tuesday, 13 September 2011

कुछ सपने, कुछ यादें



कुछ सपने, कुछ यादें
कुछ भंवर जाल सी राहें;
बुने हुए थे,
चुने हुए थे,
किस्से हमने सुने हुए थे.
पलकों के पीछे से रिस कर,
कक्षा के कुछ चंचल बालक,
 मीठी दूब का स्वाद परखने,
नीले नभ का व्यास आंकने,
कुछ धुंधले; कुछ श्याम सुनहरे.
जल तरंग संग बाँध की मिटटी.
शीत ऋतू की कंटक बूँदें.
विष बाण सी कुछ बेधती,
गुदगुदाती, कुछ सुलगाती,
कुछ बिन कारण ही टटोलती.
मानस के आनिन्द्य पटल पर 
कुछ सपनें, कुछ यादें,
कुछ भंवर जाल सी राहें.  
      

 
 

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