Tuesday, 13 September 2011

मैं ...............

बरस जाऊं तो मेघ हूँ
तरस जाऊं तो सजल बनूँ
चपल चंचल ज्यों पतंग
सरल शीतल जैसे चन्द्र
ह्रदय है विषुवत का वन
नैन पारदर्शी घन
समुद्र सी शांत स्थिरता
रत्नों से बनी सरिता
ये दो पृष्ठों की पुस्तक
हर पृष्ठ में शत सप्तक
गहन अंधकार के मध्य
प्रज्वलित लौ एक दिव्य
ये उस लौ की संरक्षिनी
ये है जीवनदायिनी
बस एक अबल अक्षम स्त्री
या सबल सक्षम सृष्टि.
 

           
    

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